लोकसभा ने एनएमसी विधेयक को मंजूरी दी
सेहतराग टीम
देशभर में डॉक्टरों के विरोध प्रदर्शन के बीच लोकसभा ने सोमवार को ‘राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग विधेयक-2019’ को मंजूरी दे दी। लोकसभा में विपक्ष ने इस विधेयक का कड़ा विरोध किया मगर सरकार ने सारे विरोध को दरकिनार करते हुए इसे पारित करा लिया। सरकार ने कहा है कि एनएमसी विधेयक निहित स्वार्थी तत्वों का विरोधी है जिसमें राज्यों के अधिकारों को बनाये रखते हुए एकल खिड़की वाली मेधा आधारित पारदर्शी नामांकन प्रक्रिया को बढ़ावा देना सुनिश्चित किया गया है। निचले सदन में विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री हर्षवर्धन ने कहा कि यह कहना सही नहीं है कि राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) विधेयक संघीय स्वरूप के खिलाफ है। राज्यों को संशोधन करने का अधिकार होगा, वे एमओयू कर सकते हैं। विभिन्न विपक्षी दलों के सदस्यों ने इस विधेयक को संघीय भावना के खिलाफ बताया था।
उन्होंने कहा कि कोई भी कॉलेज की स्थापना राज्यों से जरूरत आधारित प्रमाणपत्र प्राप्त किये बिना नहीं हो सकती है। डाक्टरों के पंजीकरण में राज्य सरकारों की भूमिका होगी। मेडिकल कॉलेजों के दैनिक क्रियाकलापों में केंद्र सरकार की कोई भूमिका नहीं होगी। डॉ. हर्षवर्धन ने कहा, ‘एनएमसी विधेयक निहित स्वार्थी तत्वों का विरोधी और लोकोन्मुखी है। यह इंस्पेक्टर राज को कम करने में मदद करेगा। इसमें हितों का टकराव रोकने की व्यवस्था की गई है। डॉक्टरों के डाटाबेस से शुचिता सुनिश्चित की जा सकेगी।’ केंद्रीय मंत्री ने कहा कि एनएमसी विधेयक लोकोन्मुखी विधेयक है। इसमें नीम हकीमों को कड़ा दंड देने का प्रावधान किया गया है।
मंत्री के जवाब के बाद द्रमुक के ए राजा ने विधेयक को विचार एवं पारित होने के लिए आगे बढ़ाये जाने के खिलाफ मत विभाजन की मांग की। सदन ने 48 के मुकाबले 260 मतों से सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। इसके बाद सदन ने कुछ विपक्षी सदस्यों के संशोधनों को खारिज करते हुए विधेयक को ध्वनिमत से मंजूरी दे दी। इससे पहले कांग्रेस के सदस्यों ने सदन से वाकआउट किया।
विधेयक पारित होने के लिए रखते हुए हर्षवर्धन ने कहा कि मोदी सरकार सबको गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने को प्रतिबद्ध है और 2014 से लगातार इस दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) में लंबे समय से भ्रष्टाचार की शिकायतें आ रही थीं। इस मामले में सीबीआई जांच भी हुई। ऐसे में इस संस्था के कायाकल्प की जरूरत हुई। मंत्री ने यह भी कहा कि यह विधेयक इतिहास में चिकित्सा के क्षेत्र के सबसे बड़े सुधार के रूप में दर्ज होगा।
हर्षवर्धन ने कहा कि मोदी सरकार भ्रष्टाचार को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करने की नीति पर चलती है और यह विधेयक भी इसी भावना के साथ लाया गया है।
उन्होंने कहा, ‘मैं सदन को आश्वासन देता हूं कि विधेयक में आईएमए (भारतीय चिकित्सक संघ) की उठाई गयी आशंकाओं का समाधान होगा।’ हर्षवर्धन ने कहा कि एनएमसी विधेयक एक प्रगतिशील विधेयक है जो चिकित्सा शिक्षा की चुनौतियों से पार पाने में मदद करेगा।
उन्होंने कहा कि सरकार ने विभाग संबंधी स्थाई समिति की सिफारिशों के आधार पर विधेयक का मसौदा तैयार किया और इसे पुन: स्थाई समिति को भेजा गया। दोबारा भी स्थाई समिति की अधिकतर सिफारिशों को स्वीकार कर लिया गया।
गौरतलब है कि एनएमसी विधेयक में परास्नातक मेडिकल पाठ्यक्रमों में प्रवेश और मरीजों के इलाज हेतु लाइसेंस हासिल करने के लिए एक संयुक्त अंतिम वर्ष एमबीबीएस परीक्षा (नेशनल एक्जिट टेस्ट ‘नेक्स्ट’) का प्रस्ताव दिया गया है। यह परीक्षा विदेशी मेडिकल स्नातकों के लिए स्क्रीनिंग टेस्ट का भी काम करेगी। राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षा ‘नीट’ के अलावा संयुक्त काउंसिलिंग और ‘नेक्स्ट’ भी देश में मेडिकल शिक्षा क्षेत्र में समान मानक स्थापित करने के लिए एम्स जैसे राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों पर लागू होंगे।
विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि आयुर्विज्ञान शिक्षा किसी भी देश में अच्छी स्वास्थ्य देखरेख प्राप्त करने के लिये महत्वपूर्ण है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग से संबंधित संसद की एक स्थायी समिति ने अपनी 92वीं रिपोर्ट में आयुर्विज्ञान शिक्षा और चिकित्सा व्यवसाय की विनियामक पद्धति का पुनर्गठन और सुधार करने के लिए तथा डॉ. रंजीत राय चौधरी की अध्यक्षता वाले विशेष समूह द्वारा सुझाए गए विनियामक ढांचे के अनुसार भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद में सुधार करने के लिये कदम उठाने की सिफारिश की।
उच्चतम न्यायालय ने 2009 में माडर्न डेंटल कॉलेज रिसर्च सेंटर तथा अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले में 2 मई 2016 को अपने निर्णय में केंद्रीय सरकार को रायचौधरी समिति की सिफारिशों पर विचार करने और समुचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया था।
इन सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए लोकसभा में 29 दिसंबर, 2017 को राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग विधेयक 2017 पुन:स्थापित किया गया था, इसे बाद में विचारार्थ संसद की स्थायी समिति को भेज दिया गया। स्थायी समिति ने बाद में उक्त विधेयक पर अपनी रिपोर्ट पेश की। समिति की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने 28 मार्च 2018 को लोकसभा में लंबित विधेयक के संबंध में आवश्यक शासकीय संशोधन प्रस्तुत किया था लेकिन इसे विचार एवं पारित किये जाने के लिये नहीं लाया जा सका। 16वीं लोकसभा के विघटन के बाद यह समाप्त हो गया।
एनएमसी विधेयक के विरोध में डॉक्टरों, छात्रों का प्रदर्शन
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के आह्वान पर राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) विधेयक, 2019 के विरोध में समूचे देश से 5,000 से अधिक डॉक्टरों, मेडिकल छात्रों और स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े पेशेवरों ने यहां एम्स से निर्माण भवन तक मार्च निकालकर प्रदर्शन में हिस्सा लिया। आईएमए देश में डॉक्टरों और मेडिकल छात्रों की सबसे बड़ी संस्था है, जिसमें करीब तीन लाख सदस्य हैं। एनएमसी विधेयक मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) की जगह लेगा और आईएमए इस विधेयक का विरोध कर रहा है। आईएमए ने कहा कि यह विधेयक ‘गरीब और छात्र विरोधी’ है तथा मौजूदा संस्करण में सिर्फ दिखावटी बदलाव किए गए हैं जबकि चिकित्सा बिरादरी द्वारा उठाई गई मूल चिंताएं अब भी जस की तस हैं।
आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष शांतनु सेन ने कहा, ‘एनएमसी, मेडिकल शिक्षा प्रणाली में पेश किया गया अब तक सबसे खराब विधेयक है और दुर्भाग्य से स्वास्थ्य मंत्री जो खुद एक डॉक्टर हैं, वह अपनी ही शिक्षा प्रणाली को नष्ट करने पर आमादा हैं। हम लोग किसी भी कीमत पर इस अत्याचार को स्वीकार नहीं करेंगे।’
प्रदर्शनकारियों को निर्माण भवन के पास हिरासत में लिया गया और बाद में उन्हें छोड़ दिया गया।
आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष (निर्वाचित) डॉ. राजन शर्मा ने कहा कि विधेयक में धारा 32 को जोड़े जाने से सिर्फ नीम हकीमी को वैधता मिल जाएगी जिससे आम जनता का जीवन खतरे में पड़ सकता है।
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